यारों ये जग को क्या हुआ, ये किस दिशा में चल निकला ।
चाहें कोई अपना जुदा हो गया, पर पैसा ही सब का खुदा हो गया ।।
सोने चांदी का महल बनाया, फूलों की खुशबू से सजाया ।
अपनों पर कभी ना प्यार आया, क्या कमाया और क्या गवाया ।।
सबकी अपनी सरगम है, सबके अपने गीत है ।
पैसे को सब कुछ समझना, यही तो दुनिया की रीत है ।।
हर कोई ये कहता है, पैसे से दुनिया चलती है ।
लेकिन मेरे सपनों की शामें, अलग ही तरह से ढलती है ।।
पैसा है पर अपने नहीं, शोहरत है पर सपनें नहीं ।
ये दुनिया की कहानी है, मुझे खुद अपनी कहानी बनानी है ।।
क्यों जिउं मैं सिर्फ दिखाने के लिए, बिन सपनों के जिंदगी अधूरी है ।
सिर्फ नाम और शोहरत से क्या होगा, दिल का सुनना भी तो जरूरी है ।।
जिन्दगी के आखरी पल में, ये सोच कर हर कोई रो दिया ।
दुनिया के पीछे भागते – भागते, खुद के सपनों को खो दिया ।।
पर मैं एक बहता दरिया हूँ, मुझे रोकने की कोशिश न कर ।
गिर के उठना सिखा है मैंने, ना मुझे किसी भी हार का है डर ।
अब तो हर पल, सपनों से मेरी बात होती है ।
जाऊ मैं चाहें कहीं, जिन्दगी भी मेरे साथ होती है ।।